Wednesday, November 26, 2008

कहीं ऐसी चूक हमसे भी न हो जाए

बात को बीते अभी बमुश्किल एक साल ही हुआ होगा। पिछली ठंढ की बात है।

कभी कभी ऐसी घटनाओं से दो-चार होना पड़ता हैं।

मंगलवार का दिन था। मै सुबह ९.२० पर हनुमान जी के मन्दिर से निकल कर ऑफिस जा रहा था। मन्दिर के बाहर बैठे भिखारियों को रोज सुबह हर व्यक्ति से लगातार कुछ न कुछ मांगते हुए देखने की आदत बन गई थी। अपनी गाडी लेने जब पंहुचा तो वहां पर एक महिला अपनी गोद में एक छोटे बच्चे को लिए उसे शाल में लपेटे वही पर बैठी थी। आने जाने वाले लोगो से कह रही थी, बाबूजी कुछ पैसे दे दो, बच्चा बीमार है, दवा करानी है। मेरे दिमाग में न जाने क्या आया मैंने जेब में रुपये खुले देखे और उसे दे दिए। मन किया कुछ पूछूं पर ऑफिस का समय और ये रोजमर्रा की जिंदगी की भागदौड़ । मुझे पैसे देते देखकर वही पर एक और सज्जन मित्र अपनी जेब टटोलने लगे तो उन साथ आए उनके मित्र ने कहा अरे यार छोडो, ये सब ऐसे ही बहाने बनाकर माँगा करते हैं। और वे दोनों अपनी मोटर साइकलपर बैठकर निकल गए। मै भी अपने ऑफिस चला गया। उस समय जाने क्यों मुझे अच्छा नही लगा परन्तु उन बन्दों की बात भी सही लग रही थी।

उसी दिन, समय शाम के लगभग ५.३५ बजे मैं ऑफिस से लौट रहा था। जो रास्ता जाने का वही रास्ता वापस आने का। रास्ते में फिर वही हनुमान जी का मन्दिर। दूर से कुछ भीड़ नजर आ रही थी। मैंने सोचा शायद कोई दुर्घटना घट गई है। मदिर के सामने वैसे भी शाम को भीड़ थोड़ा बढ़ ही जाती है। ज़रा नजदीक पहुचने पर पता चला की भीड़ वही पर लगी हुई है जहा पर से सुबह मैंने गाड़ी उठाई थी। मुझे जानने की उत्सुकता हुई। एक किनारे गाडी लगाकर मैंने भीड़ में प्रवेश किया। एकदम सामने पहुच गया और सामने का द्रश्य देखकर मेरी रूह काँप गई। वही महिला जो सुबह अपने बच्चे को गोद में लिए बैठी थी और लोगों से २-२ एवं ४-४, ५-५ रुपये मांग रही थी, इस समय उसके आसपास १०-२०-५० आदि के कई एक नोट पड़े हुए थे पर वो एक भी नोट उठा नही रही थी। बस एकटक दोनों आखो में आंसू भरे अपनी गोद में शाल में लिपटे हुए शांत बच्चे को निहार रही थी। अब वह किसी से उसके इलाज के लिए पैसे नही मांग रही थी।

मनीष दीक्षित।

5 comments:

  1. बहुत ही हृदयस्पर्शी घटना है.

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  2. बहुत मर्मस्पर्शी ! माँ तो बेचारी माँ होती है, अपने बच्चे को न बचा पाने से बड़ी मजबूरी और क्या हो सकती है ?
    घुघूती बासूती

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  3. sach men bahut dukhad ghatna ha...

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  4. kahne ki halat me nahi hun..
    behad dukhad ghatna hai..

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